Saturday, July 2, 2011

महिलाओं को समर्पित दो शब्द..

यह मेरे देश की नारी है, दस बीस पचास पे भारी है
ये कहने को तो प्यारी है, कहना अपनी लाचारी है
जिस पुरुष ने समझा नारी को अपने पैरों की जूती
समझो भाई समय से पहले किस्मत उसकी फूटी
क्योंकि जब-जब इस नारी ने मुंह खोला, तब-तब राज सिंहासन डोला
अब
शिक्षा की जब बात करें तो नारी आगे आए, पूरे साल वो ऐश कराके खुद की तकदीर बनाए।
बात करें जब राजनीति की तो नारी आगे आए, अपनी एक अदा से देखो कितने वोट जुटाए।
अपनी एक हंसी से देखो कितने घायल कर जाती है, एक पल में फिर शर्माकर वो सावित्री बन जाती है।
क्या तुमने इस नारी का चंडीका रूप भी देखा है, यह मूरत है केवल ममता की ये सिर्फ तुम्हारा धोखा है।
हमने इसको अंगुली पकड़ाई हाथ हमारा पकड़ लिया, फिर देखो इस देश को इसने अपने हाथों में जकड़ लिया।
मनोजए अलवर।

लोकतंत्र की शब्दावली

सरकार- जिसमें मूर्खों की भरमार, जिसे जनता से कोई सरोकार नहीं।
नेताजी- काम जेब काटना जनता, जेबें अपनी भरना कोई परोपकार नहीं।
नेती- अक्सर कंवारी होती, भेड़चाल में शामिल होती, कोई नया कार्य नहीं।
चुनाव- लोकतंत्र की डूबती नाव, पांच चाल की नहीं गारंटी, होंगे ये दोबार नहीं।
कुर्सी- अच्छे लोगों के लिए कब से तरसी, बैठकर गाली दो, कीचड़ फैंकों अच्छा कोई व्यवहार नहीं।
चुनाव चिन्ह- छोटे- बड़े सभी भिन्न- भिन्न, हाथी का हाथ, कमल का पेड़, जलती मोमबत्ती, बुझी लालटेन, खास कोई अंतर नहीं।
मैनीफेस्टा(घोषणा पत्र)- होता अच्छा मुखौटा, पांच साल लगाए रखना है, शासन का कोई आधार नहीं।
पांच साल- पूरे कर जाएं वो कमाल, सौदे-वादों और घोटालों में पूरे होंगे, मचेगा कोई शोर नहीं।
मतदाता- मत देकर सरकार बनाता, अपना हक मांगते शर्माता, बुद्धिमान है कोई बंदर नहीं।
जरा साचिए?
मनोज, अलवर

Saturday, June 4, 2011

                                                                  नारी

नारी है ममता की मूरत, उसकी सूरत को देख,
दो फूल श्रद्धा के उसे, तू चढ़ाकर तो देख।
सिमट जाएगा सारा आकाश तेरे आगोश में,
कभी इस नारी को तू आजमा के देख।
दो फूल श्रद्धा के उसे तू..
याद कर हर विपदा में बनी वो तेरा सहारा,
परिवार को तेरे जिसने, अपने हाथों से संवारा,
महज तेरे लिया किया इसने, अपनी इच्छा का दमन,
तेरे जीवन को बना दिया, आज उसने फिर से चमन।
इस चमन की खातिर उसका ना जाने क्या-क्या बलिदान,
सोच की बदले में तूने, उस नारी को क्या दिया?
घृणा, क्रोध, द्वेष अंहकार से ऊपर उठकर देख..
इस नारी में अपना सारा जीवन तेरे नाम किया।
याद कर जब-जब तूने समझा जूती इसे अपने पैरों की,
किस्मत तेरी ही फूटी थी, नहीं थी फूटी गैरों की।
एहसास चाहता है तो तू इसे सीने से लगाके देख
दो फूल श्रद्धा के इसे तू चढ़ाकर तो देख।
ऊपर वाले ने पहले ही इसके साथ अन्याय किया,
इसका कोमल ह्दृय उसने केवल दूजों के लिए दिया।
जब-जब इस नारी के आंचल पे आंच आएगी,
इसके कहर से तू तो क्या दुनिया भी ना बच पाएगी।
नारी रूपी इस दर्पण में तू, अपना भविष्य देख,
दो फूल श्रद्धा के उसे तू चढ़ाकर तो देख।
जहन में ला उस दूब घास को जो इंतजार करती है सिर्फ माहौल का,
और चीरकर धरा को उग्र बन जाती है।
इस दूब घास की जगह तू आज की नारी को देख
दो फूल श्रद्धा के इसे तू चढ़ाकर तो देख।
जब यह करती है कोई वादा, नहीं बदलती अपना इरादा,
पक्के इरादों से इसे तू, अपना बना के देख,
जीवन की इस बगिया में नारी रूपी फूल उगाकर देख। फिर देखना..
इसकी महक किस कद्र तेरे घर को महकाएगी, कुछ ही पलों में किस्मत तेरी फिर से बदल जाएगी।
मनोज कुमार गुप्ता, अलवर राज.
                                                         यूथ की कहानी

आज के यूथ का मन है ऊबा, पूरब से उगा पश्चिम में डूबा
आज का यूथ है ऐसे जैसे, दुविधाओं से घिरा हो जैसे क्योंकि
मोबाइल है पर चार्ज नहीं है, कहने में कोई हर्ज नहीं है।
जींस है टी शर्ट नहीं है, गाड़ी है पैट्रोल नहीं है।
केवल एक दिल के अलावा इनका कोई मर्ज नहीं है।
लडक़ी है पर दाम नहीं है, इनको कोई काम नहीं है।
चश्मा है पर गलास नहीं है, कॉलेज में इनकी क्लास नहीं है।
अगर साल में एक भी पट गई, तो सोचो की वो गुण कर गई।
सोचो इन दीवानों का हाल रहते हैं ये तंगहाल।
इनके मासूम चेहरों पर अब सिर्फ दया ही आती है,
किस तरह लड़कियां इन सबको अपनी अंगुली पे नचाती हैं।
लडक़ी गर नहीं पटती है तो ये उदास हो जाते हैं।
फिर कॉलेज की मैडम को देख अपना समय बिताते हैं।
क्लास हैं लेते पूरी उनकी, कभी नहीं ये मिस करते,
एक बची है इस कारण हर तरह उसे ये खुश रखते।
यह दर्द नहीं किसी एक का, यह दर्द है सारी कौम का,
दया करो इन यूथ पे कोई, भरो बिल इनके फोन का।
नहीं मानी कोई बात इनकी तो एक यही बीमारी है,
जहर खाने और रेल के नीचे आने की तैयारी है।
करो मदद इन आशिकों की और जीवन में पुण्य कमाओ,
इस तपती दुनिया में तुम भी अपनी आखें सेकते जाओ।
भगवान के इन बन्दों पर, अब तो तुम भी दया करो,
गर्लफ्रेंड से बात करनी है, प्लीज मोबाइल चार्ज करो।
मनोज कुमार गुप्ता, अलवर राज.
                       अलवर महान

राजस्थान का सिंह द्वार, इसकी महिमा है अपार।
कहते हैं विरासत में मिला, निशानी है इसकी बाला किला।
पूरे भारत में नाम है इसका, क्योंकि यहां है अनमोल सरिस्का।
फेयरी क्वीन आती है लेकर, दूर-दूर से कई दर्शक।
कितना प्यारा आलम होता है, दृश्य है कितना मनमोहक।
समय की कीमत जो पहचाने, घंटाघर पर आकर जाने।
मछलियों का यह कहना है, कि सीलिसेढ़ में रहना है।
ठंड़ी-ठंड़ी चले बयार, यहां होता है नौका विहार।
ह्दृय है इसका होप सर्कस, पैर हैं इसके मूंगस्का,
एक हाथ है कटीघाटी और एक है हसन खां (हसन खां मेवाती नगर)
आता है जो एक बार, नहीं भूलता पुरजन विहार(कंपनी बाग),
पर्यटकों को देता संदेश, अलवर का यह सिटी पैलेस।
अलवर है कितना महान, है मेवात इसकी पहचान,
नई रोशनी नई उमंग, देती है जहूर की भपंग (प्रसिद्व भपंग वादक जहूर खां मेवाती अलवर से ही संबंध रखते हैं।)
अब ब्रिटेन हो या श्रीलंका, चारों तरफ इसी का डंका।
चाहे रूस हो या फिर मलाया, दुनिया भर में नाम कमाया।
अलवर में हमने जन्म लिया, यह सौभागय हमारा है,
राजस्थान की वसुंधरा पर अलवर सबसे न्यारा है।